केशवानंद भारती केस 1973 क्या है? संविधान के रक्षक कहे जाने वाले केशवानंद भारती का निधन,
केरल में इडनीर नाम का एक हिन्दू मठ मौजूद है, केशवानंद भारती इसी मठ के प्रमुख थे। इडनीर मठ की ओर से केशवानंद भारती जी ने केरल सरकार के भूमि-सुधार क़ानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, केरल सरकार के इस क़ानून के तहत मठ की 400 एकड़ में से 300 एकड़ ज़मीन पट्टे पर खेती करने वाले लोगों को दे दी गई थी।
केरल बनाम केशवानंद भारती
भारती जी ने 29वें संविधान संशोधन को भी चुनौती दी थी, जिसमें संविधान की नौवीं अनुसूची में केरल भूमि सुधार अधिनियम, 1963 शामिल था। जिसकी वजह से इस क़ानून को चुनौती नहीं दी जा सकती थी।क्योंकि इससे संवैधानिक अधिकारों का हनन होता है।
मठ के वकील आई वी भट्ट जी थे उनका कहना था कि “भूमि सुधार क़ानून के ज़रिए धार्मिक संस्थानों के अधिकार छीन लिए गए थे। इसके ज़रिए 1973 में सुप्रीम कोर्ट के सामने ये सवाल आया कि क्या संसद को यह अधिकार है कि वह संविधान की मूल प्रस्तावना को बदल सके?
केशवानंद भारती केस का परिणाम क्या मिला ?
भारत केे उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश एस. एम. सिकरी की अध्यक्षता वाली 13 जजों की बेंच ने यह ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया था. कि ‘संसद की शक्ति संविधान संशोधन करने की तो है लेकिन संविधान की प्रस्तावना के मूल ढांचे को नहीं बदला जा सकता और कोई भी संशोधन प्रस्तावना की भावना के ख़िलाफ़ नहीं हो सकता। इस मामले में भारती को व्यक्तिगत राहत तो नहीं मिली। यह मामला इसलिए भी ऐतिहासिक रहा क्योंकि इसने संविधान को सर्वोपरि माना।
सुप्रीम कोर्ट ने ‘केशवानंद बनाम स्टेट ऑफ़ केरल’ मामले में एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाया जिसके अनुसार ‘संविधान की प्रस्तावना के मूल ढांचे को बदला नहीं जा सकता।
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